दिन साहू समाज के प्रथम अध्यक्ष समाज रत्न दाऊ उत्तम साँव हमारे बीच से चले गये 14 सितम्बर 1979 को उनका इंतकाल को गया । वे एक अच्छे संगठनकर्ता के साथ एक अच्छे समाज सुधारक, न्यायविद, सामाजिक एकता,सदभावना व शिक्षा को सबल देने वाले बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आजादी के पहले भारतीयों को कोई संघ,संगठन सभा रैली करने का अधिकार नही था। ऐसे गुलामी के समय में समाज रत्न दाऊ उत्तम साँव ने सन 1935 में छत्तीसगढ़ साहू समाज का नीव रखा जो अपने आप में विलक्षण कार्य था।ये कहना अतिश्योक्ति नही होगा कि दाऊ उत्तम साँव ने गुलाम भारत में ही छत्तीसगढ़ राज्य का एक स्वरूप पेस कर दिया था ।भले ही वो एक सामाजिक संगठन क्यों न हो । समाज रत्न दाऊ उत्तम साव जी का जन्म 14 अगस्त 1898 को अविभाजित दुर्ग जिले के ग्राम खोपली के एक संपन्न कृषक व मालगुजार परिवार में हुआ था। उन्होंने बहुसंख्यक कहलाने वाले पर बिखरे हुए साहू समाज को संगठित करने का महान कार्य किया। उनके विचार वर्तमान संदर्भो में आज भी प्रासंगिक है। साहू समाज पहले की तुलना में आज ज्यादा संगठित व शिक्षित है। फिर भी हम आज कई रूढ़ियों जैसे मृत्यु भोज व मुंडन संस्कार को अपने सिर पर बोझ के रूप में लादे हुए है। दाऊ उत्तम साव जी सन् 1935 से 1960 तक समाज सेवा में निरंतर सक्रीय रहे। वे बाल विवाह,खर्चीली शादी,शादी में असभ्य रीतिरिवाज,फिरका परस्ती, नशापान और मांसाहार के खिलाफत करते थे। उन्होंने उस जमाने में चाची, भाभी द्वारा पाँव छूने कि परम्परा का विरोध किया था और समाज में व्याप्त छुआछुत को मिटाकर अछूतोद्धार की दिशा में पहल कर समता मूलक समाज निर्माण में योगदान दिया था।
शिक्षा के क्षेत्र में योगदान -----
वे समाज के समुचित विकास के लिये शिक्षा को विशेष महत्व देते थे। उनका मानना था कि एक शिक्षित व्यक्ति ही एक सुदृढ़ समाज का निर्माण कर सकते है। इसलिए उन्होंने पूर्व माध्यमिक शाला सेलुद,उच्चतर माध्यमिक शाला सेलुद,पूर्व माध्यमिक शाला खोपली,पूर्व माध्यमिक शाला उतई आदि स्कूलों को प्रारम्भ करने में दाऊ जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है----
श्रमदान व जन सहयोग में अग्रणी : दाऊ जी गाव के विकास के लिये श्रमदान व जन सहयोग को विशेष महत्व देते थे ।जिसके लिये वे स्वयं आगे रहते व लोगों को भी प्रेरित करते थे।बोरिगारका , दुर्ग में कुआ निर्माण, उतई खोपली मार्ग, खोपली घुघसीडीह मार्ग के निर्माण का आरम्भ श्रमदान व जन सहयोग से किया गया। जिसने दाऊ जी का महत्वपूर्ण भूमिका रहा।
.पंच परमेश्वर के भाव को सार्थक किया------ :
वे स्वतंत्र भारत के प्रथम न्याय पंचायत के प्रधान रहे है। अविभाजित मध्य प्रदेश में 40 गाव को मिलाकर एक न्याय पंचायत हुआ करता था। दाऊ उत्तम साव जी को इस न्याय पंचायत सेलूद विकासखण्ड पाटन जिला-दुर्ग छग का प्रथम प्रधान होने का गौरव प्राप्त है। वे इतने न्याय प्रिय थे कि पंच परमेश्वर की भावना को सार्थक करते हुए अपने निकटतम संबंधियो के खिलाफ भी न्याय करने से कभी नही चुके। उन्होंने इस पद का सदुपयोग मानवता की सेवा करने, समाज को संगठित करने व व्यापक समाज सुधार का कार्य करने के लिए किया।
छत्तीसगढ़ से बाहर भी किया सामाजिक कार्य ---उनका यह कार्य जातिगत समाज से ऊपर उठकर सर्व समाज के लिए था। यह कार्य न सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नही वरन उड़ीसा के कालाहांडी जैसे पिछड़े क्षेत्र में भी उनकी कर्मवीरता से लोग प्रभावित थे। उन्होने भूख व गरीबी से तड़पते लोगो को मानवीय मदद कर लाभ पहुँचाया। जमशेदपुर, टाटा के जुगसलाई, सोनारी, साक्क्षी व काशीडीह जैसे सुदूर अंचल में बसे छत्तीसगढ़िया समाज को उन्होंने संगठित कर उनकी सेवा को ही धर्म माना। उन जगहों पर आज भी उनका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है।
उनका सम्बन्ध बड़े बड़े राजनीतिज्ञो से था----- : उनके सुपौत्र इंजीनियर सुभाष साव ने बताया कि उनके दादाजी दाऊ उत्तम साव का संबंध उस जमाने के बड़े बड़े राजनीतिज्ञो से था। मध्यप्रदेश के तात्कालिक मुख्य मंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्र से उनके बहुत ही आत्मीय व घरेलू सम्बन्ध थे। कई मामलो में उनसे सलाह भी लिया करते थे। डीपी मिश्र, पूर्व विधायक मोहनलाल बाकलीवाल, डॉ पाटणकर, तामस्कार सहित कई अन्य सांसद विधायक उनके सहगामी रहे। परंतु उन्होंने कभी इसका इस्तेमाल व्यक्तिगत या राजनितिक पद प्राप्त करने के लिये नहीं किया। कई बार उन्हें विधान सभा चुनाव लड़ने के लिए कहा गया पर उन्होंने इसे ठुकरा दिया और अपनी ज्ञान व ऊर्जा को मानवता की सेवा में समर्पित कर दिया।
आयुर्वेद विज्ञानं के ज्ञाता थे-----------------
उन्होंने आगे बताया कि दाऊ उत्तम साव जी को आयुर्वेद की काफी जानकारी थी। उन्हें पारा निकालने, उसका शोधन करने, सर्प विष का शोधन करने, मोदक टॉनिक बनाने में महारत हासिल था। नए नए अनुसंधान वह अपने सीमित साधनो में करते थे। जो कौतुहल का विषय था। उनसे बड़े बड़े नामी कंपनी के मालिक व वैद्यराज मिलने आते थे। कई दवाइयो की जानकारी हासिल कर के जाते थे। विख्यात दवा निर्माता बैद्यनाथ के संस्थापक वैद्यराज पंडित रामनारायण भी कई बार उनसे आकर मिले है। जो पारा निकालने व उसका शोधन करने की विधि सीखकर गए है। इस प्रकार उनकी एक अलग ही पहचान थी। इस प्रकार हम कह सकते है कि वे साहू समाज के अलावा सम्पूर्ण छत्तीसगढ के सर्व समाज के आधुनिक ऋषि थे। वे सचमुच में समाज रत्न थे। उनके पुत्र गेंदलाल साव व यदुवंश साव भी उन्ही के पदचिन्हों पर चलने का प्रयास किया अब उस परिवार की तीसरी पीढ़ी सुभाष साव व संतोष साव भी सामाजिक कार्य से जुड़े रहते है।उनके यादो को जीवित रखने व उनसे प्रेरणा लेने के लिये उनके गृह ग्राम खोपली में प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को पुण्य स्मरण दिवस मनाया जाता है ।-----------------------------

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